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बालोतरा में श्री रावल मल्लीनाथ जी प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार की शुरुआत, भूमि पूजन हुआ संपन्न

जीर्णोद्धार के दूसरे चरण का भव्य शिलान्यास 14 अगस्त 2025 को होगा। इसमें बाड़मेर, जोधपुर, जालौर और जैसलमेर जिलों से हजारों श्रद्धालु और माला पोता वंशज शामिल होंगे। कार्यक्रम में गणपति पूजन, नवग्रह पूजन, वास्तु पूजन, यंत्र पूजन, हवन और शीला स्थापना जैसे अनुष्ठान होंगे।

मालाणी क्षेत्र की आस्था और गौरव का प्रतीक श्री रावल मल्लीनाथ जी का प्राचीन मंदिर, जिसे भक्त मालाजाल मंदिर के नाम से भी जानते हैं, अब नए भव्य स्वरूप में निखरेगा। यह ऐतिहासिक मंदिर तिलवाड़ा कस्बे के मालाजाल में पवित्र लूणी नदी के किनारे स्थित है। सैकड़ों वर्षों की परंपरा से जुड़े इस मंदिर के जीर्णोद्धार कार्य का शुभारंभ भूमि पूजन के साथ किया गया।

भूमि पूजन रावल श्री मल्लीनाथ जी के 25वें गादीपति एवं संस्थान अध्यक्ष रावल किशन सिंह जसोल ने वैदिक मंत्रोच्चार और पारंपरिक विधि-विधान के बीच संपन्न कराया। इस दौरान संस्थान समिति के पदाधिकारी, माला पोता परिवार के सदस्य और बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।

मालाणी के संस्थापक और लोकदेवता

रावल किशन सिंह जसोल ने बताया कि रावल मल्लीनाथ जी न केवल मालाणी क्षेत्र के संस्थापक थे, बल्कि लोकदेवता और सिद्ध पुरुष के रूप में आज भी पूजनीय हैं। 1358 ईस्वी में राव शल्काजी के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में जन्मे मल्लीनाथ जी वीर योद्धा, चमत्कारी संत और ‘त्राता’ (रक्षक) के रूप में लोकमानस में स्थापित हुए। उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण एकादशी से तिलवाड़ा पशु मेला आयोजित होता है, जो अब विश्वविख्यात है। करीब 700 वर्ष पहले संतों के प्रथम समागम से शुरू हुए इस मेले में ऐतिहासिक रूप से रानी रूपादे जी, गुरु उगमसी भाटी, राणा कुम्भा, रामदेवजी, हड़बूजी और कई संत-राजघराने शामिल रहे थे।

मालाजाल की आध्यात्मिक महत्ता

मालाजाल संतों की तपोभूमि मानी जाती है। मान्यता है कि रावल मल्लीनाथ जी ने यहां जाल की टहनी रोपकर तत्काल एक विशाल वृक्ष प्रकट किया था, जो आज भी हरा-भरा है और आस्था का केंद्र है।

14 अगस्त को होगा शिलान्यास

जीर्णोद्धार के दूसरे चरण का भव्य शिलान्यास 14 अगस्त 2025 को होगा। इसमें बाड़मेर, जोधपुर, जालौर और जैसलमेर जिलों से हजारों श्रद्धालु और माला पोता वंशज शामिल होंगे। कार्यक्रम में गणपति पूजन, नवग्रह पूजन, वास्तु पूजन, यंत्र पूजन, हवन और शीला स्थापना जैसे अनुष्ठान होंगे। महाप्रसादी वितरण और मंदिर के भावी स्वरूप की प्रदर्शनी भी लगेगी।

एक वर्ष में पूर्ण होगा निर्माण कार्य

शिलान्यास के बाद मंदिर निर्माण शुरू होगा, जिसे एक वर्ष में पूरा करने का लक्ष्य है। इसके बाद यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र बनेगा, बल्कि क्षेत्रीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को भी मजबूत करेगा।

जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी

भूमि पूजन में संस्थान उपाध्यक्ष कुंवर हरिश्चंद्र सिंह जसोल, सचिव सुमेरसिंह वरिया, सदस्य मोहनसिंह बूड़ीवाड़ा, गुलाबसिंह डंडाली, स्वरूप सिंह लूणा, पूर्व विधायक शैतान सिंह राठौड़ सहित बड़ी संख्या में जनप्रतिनिधि और श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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